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मातृभाषा हिन्दी

  • Jun 13, 2019
  • 2 min read

भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। जन्म लेने के बाद मानव् जो प्रथम भाषा सीखता है उसे मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। मातृभाषा सीखने, समझने एवं ज्ञान की प्राप्ति में सरल है। ‌मेरी मातृभाषा हिंदी मात्र एक संपर्क साध्य नहीं, वरन मातृतुल्य है। यह अभिव्यक्ति है उस पहले शब्द की जिससे मैंने अपनी जन्मदात्री को सम्बोधित किया था। पिता से पहली बार कुछ कहने का प्रयास और दादी के प्यार भरे शब्दों की मिठास है इसमें। प्यार है उन कहानियों का जो माँ ने अपनी गोदी मैं सुलाकर सुनाई थी। वो मिठास है जो मिठाइयों के नाम सुनते ही अंत:करण मैं घुल जाती थी। साईकिल सीखते समय गिरने, उठ जाने, रोने और सीख जाने के मध्य जो संवाद हुए वो सब दर्ज हैं इसमें। स्कूल जाते समय का डर, और असेंबली में पहली पहली बार खड़े होकर सुने गए वो अजीब से शब्द जिनमें से शायद ही कुछ समझ आया हो। कक्षा की वो डाँट, दोस्त बनने की प्रक्रिया, वह पहली पहली लड़ाई, शरारतें, गुस्सा, नाराज़गी सब का माध्यम माध्यम का माध्यम माध्यम हिंदी तो थी। शिक्षा तो मात्र बहाना था था। पहली बार लिखे गए शब्द, रास्ते की दुकानों के बोर्डो पर लिखे नाम पढ़ने की खुशी, पहली कविता का पाठ, वह शेर और खरगोश की कहानी सब हिंदी में ही तो थी। लड़ाई हो या प्यार हो सब हिंदी में प्यार हो सब हिंदी में हिंदी में ही तो हुआ। जी हां! अपनी पहली प्रेम कविता भी हिंदी में ही लिखी और पहली गाली भी हिंदी में ही सुनी। भाषण प्रतियोगिता का पुरस्कार, माइक पकड़ने का रोमांच, साहित्य के प्रति दीवानगी सभी हिंदी की ही तो देन है। शिक्षा का माध्यम भले ही अंग्रेजी हो गया पर दिल की भाषा तो आज भी हिंदी ही थी। हर वह प्रेम कविता, हर वह वाक्य जो अपनी प्रेयसी के लिए कहा हिंदी में ही तो था। वह प्यार, इजहार, तकरार सभी का माध्यम मेरी मातृभाषा ही तो थी। हिंदी मेरे लिए मात्र एक भाषा नहीं रही। यह मेरे जीवन की यात्रा को परिभाषित करते हुए कुछ शब्दों, कुछ व्याख्याओं और कुछ वृतांतों का सम्मिश्रण है। हर बार नया शब्द सीखने की खुशी है। इसमें कितना अजीब है ना! जो सब शब्द सबसे खूबसूरत होते हैं एवं सबसे पहली बार कहे जाते हैं अक्सर वही विस्मृत हो जाते हैं। रह जाता है तो केवल वह भाव जिसका तारतम्य स्मृति के साथ सदा के लिए स्थापित हो जाता है। वस्तुतः मेरा हिंदी शब्दकोश, मेरी कविताएं, मेरे लेख और मेरी विचार श्रृंखला, सभी का उद्भव और विकास हिंदी के साथ ही हुआ। एक प्रकार से मेरा हिंदी शब्दकोश, हिंदी साहित्य में अभिरुचि एवं अभिव्यक्ति का विकास मेरी जीवन यात्रा, मेरे वृतांत और मेरे ज्ञान का भी उद्भव एवं विकास परिभाषित करता हुआ प्रतीत होता है। हिंदी जीवन-रेखा है। मैं तथा मेरे जैसे करोड़ों हिंदीभाषी सदैव इसके ऋणी रहेंगे तथा इसके प्रचार- प्रसार का प्रयास करते रहेंगे। हेमंत तिवारी बी.ए. (ऑनर्स।) द्वितीय वर्ष के छात्र हैं। वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएँ और लेख लिखते हैं और नियमित रूप से इस ब्लॉग के लिये अपनी रचनाएँ भेजते है।

 
 
 

1 Comment


akankshasingh276
Aug 13, 2019

It just feels so good so lovely to read it...the way you fabricated the content and everything revolving around childhood. It just felt so nice and warm. Thank you for writing.

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