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वज्रपात

  • Jun 13, 2019
  • 2 min read

मैं मृत्यु का बन के चारण अब सबको सत्य बताऊँगा मैं रौद्र रूप कर के धारण अब समर कराने आऊँगा अश्रुकण को मैं भांप बना अब घोर घात करने आया वरदान कहीं अभिशाप बना मैं वज्रपात करने आया क्यों मेरी कविता मौन रहे शब्दों से युद्ध करूँगा अब क्यों रौद्र भावना गौण रहे अश्कों को क्रुद्ध करूँगा अब मैं सूरज प्राची को दिलवा रश्मि से बात करूँगा अब गाण्डीव सव्यसाची को दिलवा तिमिर के साथ लड़ूँगा अब वो लहू बहाते सीमा पर कुछ घर में बैठे हंसते हैं वीरों को मौत नहीं आती वो अमरत्व में बसते हैं एक बेटा माँ का मरता है है आँचल सुना हो जाता पछताता भाग्य पर हूँ अपने उस माँ का बेटा हो पाता! कर्मठ यौवन सीमा पर है रक्तिम सावन सीमा पर है एक राम दिखाई पड़ता है सहस्त्र रावण सीमा पर हैं सीने पर उसके है भारी शत स्वप्नों का बाजार लगा अरमानों की भीड़ लगी वो करने सब साकार चला उनके कर्तव्यों पर लेकिन आवाज उठाते हैं कायर बन जाओ वीरता के चारण क्यों बनते प्रेम भरे शायर? वो चलता सागर चीर सदा दिखता छोटा हिमराज वहाँ काँधे पर रख कर वीर सदा अस्त्र से करता आगाज़ वहाँ संसद की चौखट पर मैंने लांछन उस पर लगते देखा कुर्सी की खातिर नेता ने है देशप्रेम बिकते देखा क्या खून नहीं खौलेगा अब? क्या भूखंड नहीं डोलेगा अब? मैं चुप होकर क्या जी लूँगा? क्या कवि नहीं बोलेगा अब? साँसों को रोकना कठिन नहीं शब्दों को कैसे रोकोगे? तुम कुकूर बनो, मैं एकलव्य भर शर मुह में क्या भौंकोगे? चेताता हूँ मैं, चुप रहना वीरों को अपशब्द न कहना वरना स्याही का छोड़ प्रयोग मैं अस्त्र उठा कर आऊंगा, मैं वज्रपात कर जाऊंगा ‍।। ---ऋत्विक ‘रुद्र ऋत्विक रुद्र बीए (ऑनर्स) प्रथम वर्ष के छात्र हैं । उन्होंने इस कविता के लिए अभिरंग 2019 में हिंदी कविता प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया। प्रतियोगिता का एक विषय प्रेम था और उन्होंने मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए यह कविता लिखी थी।

 
 
 

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